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कृष्णा सोबती के उ...

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कृष्णा सोबती के उ...

कृष्णा सोबती के उपन्यास “डार से बिछड़ी” तथा “मित्र्ाांे मरजानी” में नारी-विमर्श

Author Name : रुमा पाल, डॉ. अजय कुमार शुक्ल

सारांश

बदलते सामाजिक परिदृश्य में समकालीन साहित्य में नारी की संवेदना, नारी चेतना और नारी-विमर्श की अभिव्यक्ति को बखूबी देखा जा सकता है। इसे पितृसत्तात्मक समाज के विरुद्ध नारी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है। छायावाद के युग से आरम्भ हुआ नारी-विमर्श नारी-चेतना से संपन्न होकर, प्रखर और प्रबल स्वर का रूप ले लिया है। नारी-विमर्श के फलस्वरूप समकालीन समाज में न केवल नारी की अपनी पृथक पहचान निर्मित हुई है, अपितु समाज के हर क्षेत्र में उसकी एक स्वतंत्र और स्वाभिमानी छवि भी निर्मित हुई है। वर्तमान परिवेश में नारी-विमर्श नारी अस्मिता का प्रतीक बन गया है। उषा प्रियवंदा, मंजुल भगत, नासिरा शर्मा, मैत्रेयी पुष्पा, कृष्णा सोबती आदि महिला रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में नारी की पीड़ा और उसके अस्तित्व के संघर्ष को मार्मिकता के साथ शब्दबद्ध किया है। एक उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में कृष्णा सोबती ने अपनी रचनाओं में नारी की वेदनाओं और उसकी सामाजिक स्थिति का जीवंत चित्रण किया है । कृष्णा सोबती की कहानियां इस सन्दर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है।

मुख्य शब्दः संवेदना, अभिव्यक्ति, पितृसत्तात्मक, अस्तित्व, मार्मिकता