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गोदान में निरूपित समस्याएं और युगबोध
Author Name : अनिल कुमार प्रजापति
सारांश
जीवन और समाज के अंतर्संबंधों की संवेदनात्मक व्याख्या करने वाले प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कथाकार के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले प्रेमचंद का साहित्य नाटक, उपन्यास, कहानी, अनुवाद, बाल साहित्य, निबंध तथा पत्र-पत्रिकाओं में बिखरा हुआ है। प्रेमचंद का उपन्यास साहित्य (सेवासदन, वरदान, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि) वर्तमान जीवन संदर्भ से जुड़े हुए विभिन्न समस्याओं का निरूपण करता है। गोदान में प्रेमचंद जी ने जो समस्याएं उठाई हैं वे उनके स्वयं के समय की हैं। उन्होंने अपने समकालीन भारतीय समाज का अंतः साक्षात्कार किया है। निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है की प्रेमचंद ने किसान और मजदूरों के महाभारत के रूप में गोदान की रचना कर एक युग दृष्टा की भूमिका का भी निर्वाह किया है। सच्चे युग दृष्टा के रूप में उन्होंने तत्कालीन युग की यथार्थ भूमि पर वर्तमान, भूत और भविष्य के एक- एक स्पंदन को गोदान में सहेज कर भविष्य दृष्टा की भूमिका का भी निर्वहन किया है। प्रेमचंद जी ने गोदान में जिन जिन समस्याओं पर अपनी लेखनी की स्याही को खर्च किया है। उनमें से अधिकांश समस्याएं किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान हैं। मेरे इस प्रस्तुत शोधपत्र के शीर्षक 'गोदान में निरूपित समस्याएं और युगबोध' में इन प्रमुख समस्याओं का अध्ययन एवं विवेचन किया जाएगा तथा हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि ये समस्याएं वर्तमान संदर्भ के आलोक में कितनी प्रासंगिक हैं और इसी शर्त पर प्रेमचंद के सामाजिक युगबोध का भी अंकन किया जाएगा।
मूल शब्द- कथाकार, संदर्भ,साक्षात्कार,महाभारत, अंकन,युगबोध