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ISSN: 2455-6211

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साहित्य की उपादे...

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साहित्य की उपादे...

साहित्य की उपादेयता और सरोकार

Author Name : डॉ. देशराज वर्मा

शोध-पत्र सारांश

यह निर्विवाद है कि साहित्य लोकायन को प्रबुद्ध करता है। साथ ही वह समाज तथा जीवन के अधोगामी व्यवहार तथा क्षुद्रवृत्तियों के स्थान पर उत्थान का समाजशास्त्र रचता है। निम्नगामी वृत्तियों के निराकरणार्थ ही नीति तथा आदर्शों की सृष्टि की जाती है। यदि हम रहीम, बिहारी आदि के नीति तथा ज्ञान के मुक्तकों को ध्यान से देखें तो उनके मूल में उर्ध्वमुखी बदलाव की कवायद ध्वनित होती सुनाई पड़ती है। भारतेन्दु, प्रेमचंद से होते हुए साहित्य के सामाजिक, सांस्कृतिक सरोकार आधुनिक विमर्शों तक आ पहुँचे हैं। दलित, स्त्री, आदिवासी आदि साहित्य की मुख्यधारा विषय बनने लगे हैं। इस शोध आलेख में साहित्य के नाना रूपों की चर्चा तथा प्रासंगिकता की पड़ताल की गयी है।