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औरंगजेब कालीन मिथिला की सांस्कृतिक व राजनीतिक स्थिति
Author Name : डाॅ॰ आनन्द वर्धन कुमार
मुगलवंश के सबसे महत्त्वपूर्ण किन्तु विवादास्पद सम्राट के रूप में औरंगजेब को याद किया जाता है। बाबर से लेकर शाहजहाँ तक की विरासत को उसने मात्र तलवार की नोक पर ही नहीं वरन् कूटनीति से भी प्राप्त किया। सम्राट होना चाहिए था दारा सिकोह को (जो शाहजहाँ के साथ शासन की बागडोर सँभाले हुए था) किन्तु शाहजहाँ के न चाहने पर भी सम्राट बना औरंगजेब। शाहजहाँ (सम्राट) जीवन में ही बन्दी हुआ। द्रष्टव्य व ध्यातव्य यह भी है कि तुर्क-इरानी, अफगान-मुगल इत्यादि विदेशी मुस्लिम आक्रमकों ने भारत के पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में ही प्रत्यक्ष रूप से राज्य स्थापित किया था, किन्तु सामान्य तथा वर्तमानकालिक कतिपय इतिहास पढ़ने से यह प्रतीत होता है कि उनका साम्राज्य सम्पूर्ण भारत पर था। इसी क्रम में यह देखा जाना चाहिए कि कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर औरंगजेब तक ‘‘उत्तर-पश्चिम भारत’’ पर ही उनका प्रत्यक्ष शासन स्थापित हो पाया था। शेष भारतीय क्षेत्र या तो स्वतंत्र रहे या एक निश्चित रकम देकर ( जिसे समय-समय पर बंद भी कर दिया जाता था) अपने आप को सुरक्षित रखा था, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों जागीरदार (राजा या सूबेदार) थे। उक्त प्रांतीय जागीरदारों या राजाओं द्वारा निश्चित रकम की यदा-कदा अदाएगी न होने अथवा राजा को सम्राट न मानने की स्थिति में (विद्रोह) युद्ध का सामना भी करना पड़ता था। औरंगजेब अथवा अन्य सम्राटों की शासन व्यवस्था की चर्चा करना यहाँ विषयान्तर होगा। हमें औरंगजेबकालीन मिथिला की स्ाििति पर विचार करना है अतः विषयांतर से अपने को अलग करते हुए इन बातों का उल्लेख करना उपयुक्त होगा कि औरंगजेब द्वारा किए गए निम्नलिखित शाही फरमान या घोषणाओं (आदेशों) का पालन मिथिला में किस प्रकार हुआ था। इसकी राजनीतिक स्थिति क्या थी?