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भारतीय संस्कृति में वंशावली लेखन का अध्ययन
Author Name : मधुलता सैनी
शोध सारांश
पुरातन काल से लेकर वर्तमान काल तक वंशावली परंपरा ने हिन्दुओं के गौरव को समय-समय पर बढ़ाने का कार्य किया है। वंशावली लिखना एवं लिखवाना हिन्दू संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। वंशावली का सामाजिक बंधनों की पवित्रता रक्त की शुद्धता को बनाए रखने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। जब एक जगह बैठकर पूरा परिवार वंशावली सुनता है तो वह पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को सुनकर स्वाभिमान का अनुभव करता है तथा अपने पूर्वजों के आदर्शों को जीवन में अपनाता है। वस्तुतः वंशावली समाज के धार्मिक और नैतिक उत्थान में सहायक है। पुरातन काल से ही प्रचलित वंशावली लेखन परंपरा ने हिन्दुओं की गौरव को समय-समय पर बढ़ाने का कार्य किया है। हिन्दू समाज को समान संस्कृति में बाँधे रखने का अटूट प्रयास वंशावली अनेक वर्षों से करती आ रही है। समाज का उत्थान में पतन वंशावली कार्य पर निर्भर है। वंशावली सुनने एवं समझने से ही समाज का नैतिक उत्थान हुआ है। इसने समाज को मान मर्यादा संस्कार एवं सर्वधर्म की शिक्षा प्रदान की । हम मानते हैं कि बीते समय को कोई वापस नहीं ला सकता पर बीते समय को जीवित रखने का कार्य अगर किसी ने किया है तो वह एकमात्र नाम है ’वंशावली’ । अतः यह कहा जा सकता है कि भारत के इतिहास को जानना है, देखना है, समझना है तो वंशावलियों को जानना होगा समझना होगा। इस शोध पत्र में भारतीय संस्कृति में वंशावली लेखन का ऐतिहासिक अध्ययन का अध्ययन किया गया है ।
मुख्य बिंदु:- राष्ट्रीय एकता व सामाजिक समरसता में वंशावली के महत्त्व, साहित्य रचनाओं में वंशावली, वंशावली लेखन के संत, वंशावली वाचन का महत्व एवं निष्कर्ष ।