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परिवार में बुजु़...

परिवार में बुजु़र्गों की समस्याओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन

Author Name : महेन्द्र प्रताप तिवारी, डॉ योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी

सारांश

आज की नई पीढ़ी के संबंधों का दायरा नाभिकीय परिवार तक सीमित होकर रह गया है । आधुनिक परिवर्तनकारी शक्तियों के कारण परम्परागत समाजिक मूल्य तीव्र परिवर्तन के प्रवाह में है । परिणामस्वरूप समाज में पारिवारिक ताने-बाने का संतुलित स्वरूप विकृत होता जा रहा है । व्यक्तिवादी और उपयोगितावादी युवाओं की अपने प्रजननमूलक परिवार की तुलना में जन्ममूलक परिवार से घनिष्टता में कमी हो रही है । ऐसे युवाओं के लिए खून का रिश्ता गाढ़ा नहीं रह गया है । परम्परागत रूप से सम्मानित एवं प्रतिष्ठित बुजु़र्गों की सत्ता का ह्रास और अवमूल्यन हुआ है । शारीरिक-मानसिक कमजोरी और विविध रोगों से ग्रस्त दुःखद बुढ़ापे में अन्तःक्रिया और समायोजन के आयाम कम हो रहे हैं । युवा पीढ़ी द्वारा बुजु़र्गों के ज्ञान और अनुभव को न तो महत्त्व दिया जा रहा है और न ही उनके व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग ही किया जा रहा है । वृद्धजनों के जीवन में सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक सहयोग की दृष्टि से परिवार के सदस्यों की निर्णायक भूमिका होती है । वृद्धजनों की सेवा और सुश्रूषा में परिवार का कोई विकल्प नहीं है तथा परिवार में समायोजन वृद्धाश्रम जैसे संस्थाओं में समायोजन से आसान है । युवा पीढ़ी की वृद्धजनों के प्रति सहयोगात्मक रवैया तथा परिवार के वातावरण की अनुकूलता समायोजनशीलता के लिए आवश्यक है । सामाजिक सम्पर्क और गतिशीलता को बढ़ावा देकर वृद्धजनों में अवसाद की तीव्रता को कम किया जा सकता है तथा उनमें स्वयं के लिए अनुभूत अनुपयोगिता की भावना को न्यून किया जा सकता है । वृद्धजनों की देखभाल में परिवार की भूमिका के साथ-साथ सरकार और गैर-सरकारी संस्थाओं की भूमिका की भी आवश्यकता है ।

संकेत शब्द

प्रजननमूलक परिवार, जन्ममूलक परिवार, खून का रिश्ता, अवसाद, समायोजन, उपभोक्तावादी संस्कृति, मूल्य, अन्तःक्रिया, जीवन की संध्याबेला, औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिकीकरण और अन्तरपीढ़ीगत सौहार्द ।