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पाणिनि के अष्टाध...

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पाणिनि के अष्टाध...

पाणिनि के अष्टाध्यायी का संस्कृत व्याकरण शास्त्र में महत्व

Author Name : डॉ. सरोज मीना

शोध सारांश

पाणिनि ने अपने समय की संस्कृत का सूक्ष्म सर्वेक्षण किया। इस शोध के आधार पर उन्होंने जिस व्याकरण का प्रचार किया, वह न केवल उस समय संस्कृत की नियामक कृति बन गया, बल्कि आने वाली संस्कृत रचनाओं को भी प्रभावित किया। पाणिनि संस्कृत के प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ वैयाकरण हैं। उनके अष्टाध्यायी नामक ग्रंथ में आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पद हैं। प्रस्तुत विषय के अनुसार प्रत्येक पाद में सूत्रों की संख्या अधिक या कम होती है। अति संक्षिप्त नियमों या विनियमों को सूत्र कहा जाता है। अत्यंत संक्षिप्त होना पाणिनि सूत्र की सबसे अनूठी विशेषता है। महर्षि पाणिनि ने इस सारांश के लिए एक स्वतंत्र पद्धति तैयार की। परिणामस्वरूप, सूत्रों की अधिकांश रचना अत्यधिक तकनीकी और लोकप्रिय अभ्यास की भाषा से भिन्न हो गई। यद्यपि पाणिनि के सूत्र की भाषा संस्कृत है, संस्कृत के अच्छे ज्ञान से सूत्र का अर्थ जानना असंभव हैः तथापि, यह व्याकरण बहुत संक्षिप्त हो गया है और कुछ हद तक अबोधगम्य भी हो गया है, फिर भी एक से बड़ा शब्दों का समूह सूत्र सिद्ध करता है। यह एक बहुत बड़ा लाभ है।

मुख्य बिन्दु:- परिचय , अष्टाध्यायी , प्राचीन कथाओं में उल्लेख , व्याकरण शास्त्र , शब्द के अर्थ , शब्द का प्रयोग , शब्दों के भेद , पाणिनि की विचारधारा, अष्टाध्यायी अथवा पाणिनीयाष्टक , अध्याय , अष्टाध्यायी संहिता , सूत्र , ग्रन्थ , पाठान्तर , पाणिनीय तन्त्र के खिल ग्रन्थ , धातुपाठ, गणपाठ , उणादि सूत्र , लिङ्गानुशासन , परिभाषा पाठ , फिटदृसूत्रपाठ , नए दार्शनिकों का समर्थन एवं टीका टिप्पणी और संदर्भ ।