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संस्कृत महाकाव्यों का उदभव व विकास
Author Name : डॉ. सरोज मीना
शोध सारांश
लोकविश्रुत देववाणी संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओं की शिरोमणि, उदात्त एवं बोधगम्य विचारों का मनोरम भण्डार, प्राचीन भारत के साहित्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन की दुर्लभ कुंजी तथा भारत के शुद्ध मुकुर पुरुषार्थु चतुष्टय। यह आर्यों की गिरवाणी है, जिसे इस धरती पर सबसे प्राचीन कहा जाता है। संस्कृत साहित्य भारत का राष्ट्रीय गौरव है, यह भारतीय संस्कृति का शुद्ध दर्पण है। इसमें हम अपने गौरवशाली अतीत की झलक देख सकते हैं। आचार्य भामाह ने महाकाव्य की सूत्रात्मक विशेषताओं का परिचय संस्कृत काव्य में दिया और बाद में आचार्यों, दंडी, रुद्रत और विश्वनाथ ने अपने-अपने ढंग से उनका विस्तार किया। इस परंपरा में अंतिम रूप में आचार्य विश्वनाथ का चरित्र चित्रण पूर्व के सभी मतों के सारांश के रूप में उपलब्ध है।भारतीय काव्य के निर्माण की पूर्व प्रेरणा कवियों को रामायण तथा महाभारत जैसे महनीय महाकाव्यों के अध्ययन से प्राप्त हुई। आख्यान, देवस्तुति, भाव प्रधानता , रामायण, महाभारत, भाव एवं आख्यान तत्वों की प्रधानता कालिदास एवं परवर्ती काव्यकार, भावपक्ष की अपेक्षा कला पक्ष उदात्त यह शैली रामायण, महाभारत, कालिदास, अश्वघोष आदि के काव्यों में प्राप्त होती है । यह शैली भारवि, माघ, श्रीहर्ष आदि के काव्यों में प्राप्त होती है। यह शैली द्वयर्थक काव्यों में प्राप्त होती है। महाकाव्यों का उद्भव ऋग्वेद के आख्यान सूक्तों- इन्द्र, वरुण, विष्णु और उषा आदि के स्तुति मन्त्रों तथा नराशंसी गाथाओं से हुआ है। ब्राह्मण आदि ग्रन्थों में इन आख्यान आदि का वृहद रूप मिलता है। यही स्वरूप आगे चलकर महाकाव्य के रूप में परिवर्तित हो गया। क्रौंच वध से खिन्न मन वाले महाकवि वाल्मीकि के वाणी से प्रस्फुटित व्याध्या-शाप (मा निषाद प्रतिष्ठा त्वम्) वाल्मीकि कृत रामायण के रूप में आदिकाव्य के गौरव को प्राप्त कर लिया, तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि का गौरव प्राप्त हुआ। वाल्मीकि रामायण काव्यरूपी गंगोत्री का उद्गम है जहाँ से विभिन्न कवियों को काव्यस्रोतस्विनी रूपी मन्दाकिनी अविरल प्रवाहित हो रही है। रामायण के बाद वेदव्यास कृत महाभारत भी परवर्ती कवियों का उपजीव्य काव्य बन गया। रामायण और महाभारत आगे चलकर परवर्ती काव्यों और महाकाव्यों के लिए उपजीव्य ग्रन्थ हो गये।
मुख्य बिन्दु:- प्रस्तावना , महाकाव्य के लक्षण , महाकाव्य के सम्बन्ध में पश्चिमी मत , महाकाव्यों की उत्पत्ति और विकास , संस्कृत के महाकाव्य एवं निष्कर्ष ।