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’शब्द भी हत्या कर...

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’शब्द भी हत्या कर...

’शब्द भी हत्या करते हैं’ उपन्यास में चित्रित मानवीय संवेदना

Author Name : डाॅ. निशा वर्मा

मनुष्य मुलततः संवेदनशील प्राणी है। संवेदना मानव हृदय की अमूल संपदा है। हमारे लौकिक जीवन में सुखात्मक एवं दुखात्मक दो अनुभूतियाँ प्रधान हैं। इन दोनों का अनुभव मनुष्य अपने वैयक्तिक जीवन में करता है। सभी मानसिक घटनाओं के मूल में चूंकि संवेदना का तत्व निहित होता है, इसलिए समस्त भावनाओं और अनुभवों में भी संवेदना की उपस्थिति अनिवार्य है। यदि जीवन में संवेदना न हो तो मनुख्य पाषाण हो जाता है। दूसरों के सुख-दुख को अनुभव करने काला हृदय ही न रहा तो मनुष्य के पास मनुष्य कहलाते के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। प्रत्येक साहित्यकार संवेदना को माध्यम बनाकर अपना साहित्य सृजन करता है। हृदेश भी इसके अपवाद नहीं। उन्होंने युगबोध एवं युगचेतना के साथ मानवीय संवेदना को ‘शब्द भी हत्या करते हैं’ उपन्यास में अभिव्यक्ति दी है।