International Journal of All Research Education & Scientific Methods

An ISO Certified Peer-Reviewed Journal

ISSN: 2455-6211

Latest News

Visitor Counter
3214300106

न्यायिक सक्रियत...

You Are Here :
> > > >
न्यायिक सक्रियत...

न्यायिक सक्रियता एवं न्याय तंत्र का अध्ययन

Author Name : डॉ. सुगल राम रैगर

शोध सारांश

हमारे देश में लिखित संविधान की व्याख्या केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय तथा मौलिक अधिकारों की रक्षा के निमित्त एक स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया गया है । जाहिर है उस दृष्टि से न्यायपालिका की भूमिका भारत मैं न्याय करने से लेकर मूल अधिकारों की रक्षा और सरकार के विभिन्न अंगों को अपने निर्धारित कार्यक्षेत्र में रहने के लिये निर्देशित करने तक विस्तृत है । अर्थात् भारत में उच्चतम न्यायालय न सिर्फ संविधान की रक्षा करता है बल्कि किसी भी सरकार अथवा शक्ति द्वारा उसका उल्लंघन किए जाने से भी बचाता है । भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि उसने विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन की व्यवस्था दी है । शक्तियों का यह विभाजन स्पष्ट कर देता है कि संविधान का उद्देश्य किसी को भी असीमित अधिकार और शक्ति प्रदान करना नहीं है । चूंकि शक्तियों की सीमाबद्धता का निर्धारण ये संस्थाएं स्वयं नहीं कर सकतीं, इसलिए शासन की प्रक्रिया में इन शक्तियों के टकराव के फल-स्वरूप उठने वाले विवादों के हल के लिए एक निष्पक्ष संस्था की भूमिका महत्वपूर्ण है । संसद राज्यों की विधानसंभाएं या केन्द्र और राज्यों की कार्यपालिका यह काम करने में तब असमर्थ हो जाती हैं जब उन्हीं की कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़ा किया जाता है । अतः न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या का दायित्व सौंपा गया है और इस प्रकार से वह संविधान की रखवाली करती है । लेकिन पिछले कुछ समय से बदलती राजनीतिक सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर देश की न्याय व्यवस्था के स्वरूप में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है ।न्यायपालिका किसी देश में नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने और देश की संवैधानिक और कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका को न्यायिक सक्रियता के रूप में जाना जाता है। यह कभी-कभी कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण करता है। उम्मीदवारों को पता होना चाहिए कि न्यायिक अतिक्रमण न्यायिक सक्रियता का एक उग्र संस्करण है। 

न्यायिक सक्रियता को जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर और जस्टिस पीएन भगवती के प्रयासों के कारण न्याय तक पहुंच को उदार बनाने और वंचित समूहों को राहत देने में सफलता के रूप में देखा जाता है।