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कबीर का कवि रूप

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कबीर का कवि रूप

कबीर का कवि रूप

Author Name : डॉ0 सुमन सिंह

हिन्दी साहित्य के इतिहास में महात्मा कबीर एक ऐसे विवादास्पद कवि है, जिनकी तरफ विद्वानो का ध्यान बहुत समय बाद केन्द्रित हुआ। यह सर्वविदित सत्य है, कि कबीर सन्त पहले और कवि बाद में सिद्ध हुए। काव्य रचना के उद्देश्य से उन्होने कही भी कविता नही की। उन्हे न तो शास्त्रीय ज्ञान था और न उन्होने काव्य के अंगों तथा तत्वों का अध्ययन ही किया था, फिर भी उनके काव्य में उनकी आत्मानुभूति के कारण काव्यत्व स्वतः आ गया है। किसी भी काव्य रचना के लिए (भारतीय) शास्त्रीय दृष्टि से प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अम्यास को अनिवार्य काव्य हेतु स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार कबीरदास में भरपूर प्रतिभा विद्यमान थी। और कबीर के कट्टर आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी कबीर में प्रतिभा का होना स्वीकार किया है। वे लिखते है, कि उन्होने प्रतिभा के बल पर ही समाज में व्याप्त कुरीतियांे, वाह्याचारों, आडम्बरों आदि पर करारा चोट किया है, किन्तु आचार्य परम्परा के आलोचकों ने उन्हे कवि रूप में महत्व नही दिया है। इस बात के बावजूद भी हिन्दी साहित्य के प्रत्येक इतिहास में कबीरदास का उल्लेख किया गया है, और उनके विचारों और भावनाओं का अध्ययन किया गया है। उनके काव्यत्व को भी किसी न किसी रूप में स्वीकार किया ही गया है।