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शैक्षिक परिवेश में स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा-दर्शन का विवेचनात्मक अध्ययन
Author Name : डाॅ॰ वीरेन्द्र कुमार
किसी भी देश की शक्ति एवं सम्पन्नता का आधार उस देश की शिक्षा व्यवस्था है, जो उस देश के जीवन दर्शन, सामाजिक संरचना और शासन व्यवस्था का दर्पण होती है, जिस देश की शिक्षा व्यवस्था अपेक्षित होती है, वह देश उन्नति के पथ पर चलकर, उच्चतम शिखर पर पहुँचता है, इसी संदर्भ में स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन को इस अध्ययन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तावना
वर्तमान समाज व वैयक्तिक जीवन को शिक्षा ने बहुआयामी संदर्भों में बहुत प्रभावी किया है। शिक्षा द्वारा ही सामाजिक ढ़ाँचे में अप्रत्याशित परिवर्तन किया जा सकता है, ज्ञान के विस्तार को बढ़ाया जा सकता है। पाठ्यक्रम में नये-नये विषयों का समावेश किया जा सकता है। देश को शिक्षा के माध्यम से उच्च शिखर पर ले जाने के लिए बहुत से भारतीय विद्वानों ने प्रयास किया है और उन्हीं के शैक्षिक प्रयासों का परिणाम हम हैं। भारतीय भूमि पर जन्में दयानन्द सरस्वती, स्वामी रामतीर्थ, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी, डाॅ॰ भीमराव अम्बेडकर, गिजू भाई बधेका, विनोबा भावे, जे॰कृष्णमूर्ति और स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक चिन्तन भारत के समाज के विकास के लिए था। इन्होंने अपने शैक्षिक विचारों से न केवल ज्ञान संवर्धन किया है, अपितु समाज की उन्नति के लिए शिक्षा प्रणाली का उन्नयन भी किया है। प्रस्तुत अध्ययन में स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के विवेचनात्मक अध्ययन के माध्यम से, देश और समाज हित में उनके शैक्षिक विचारों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
शोध समस्या का कथन:- प्रस्तुत अध्ययन का शीर्षक ‘शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का विवेचनात्मक अध्ययन’ है।